
मेरठ कमिश्नरी ऑफिस पर आत्मदाह का प्रयास: भेदभाव और उपेक्षा का दर्द उभरा सड़क पर
मेरठ, उत्तर प्रदेश।
शहर के प्रशासनिक ढांचे को हिला देने वाली घटना सोमवार को सामने आई जब मेरठ कमिश्नरी ऑफिस के मुख्य द्वार पर मां-बेटे ने ज्वलनशील पदार्थ डालकर आत्मदाह का प्रयास किया। यह घटना अचानक घटी और कुछ ही पलों में गेट पर अफरा-तफरी का माहौल बन गया। गनीमत रही कि मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने सतर्कता दिखाई और युवक के हाथ से बोतल छीनकर बड़ा हादसा टाल दिया।
घटना का सिलसिला
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, युवक अपने साथ बोतल में तेल लेकर ऑफिस गेट पर पहुंचा। गुस्से से तमतमाया वह लगातार “नगर आयुक्त हाय-हाय” के नारे लगाता रहा और तेल अपने शरीर पर उड़ेलने लगा। युवक की मां भी उसके साथ खड़ी थी और दोनों मिलकर अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगा रहे थे।
पुलिस ने जैसे ही देखा कि युवक अपने ऊपर तेल डाल रहा है, तुरंत दौड़कर बोतल छीन ली और मां-बेटे को काबू में लिया। इसके बाद गेट पर खड़े कर्मचारियों और अन्य लोगों ने राहत की सांस ली, वरना यह घटना प्रशासन के माथे पर एक और बड़ा दाग छोड़ सकती थी।
पिछड़ी जाति होने का दर्द
पीड़ित युवक ने मौके पर मौजूद मीडिया के सामने बेहद गंभीर आरोप लगाए। उसने कहा कि उसकी सबसे बड़ी गलती यह है कि वह पिछड़ी जाति से आता है। यही कारण है कि उसकी शिकायतें और समस्याएं अनसुनी कर दी गईं। युवक का कहना था कि कई बार उसने अधिकारियों के सामने अपनी व्यथा रखी, लेकिन उसे केवल अपमान और उपेक्षा का सामना करना पड़ा।
यह बयान सिर्फ एक व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि उस सामाजिक भेदभाव पर भी सवाल उठाता है जो आज भी व्यवस्था के भीतर जिंदा है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
घटना के बाद सुरक्षा कर्मियों ने मां-बेटे को हिरासत में ले लिया और उन्हें शांत कराने की कोशिश की। फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है और यह जानने की कोशिश कर रही है कि आखिर किन परिस्थितियों ने युवक को इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।
कमिश्नरी ऑफिस के अधिकारियों ने भी मामले को गंभीरता से लिया है। सूत्रों के मुताबिक, पीड़ित पक्ष की समस्याओं की सुनवाई के लिए एक अलग टीम बनाई जा सकती है, ताकि उन्हें न्याय मिल सके और इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।
सवालों के घेरे में प्रशासन
यह घटना एक बार फिर इस सवाल को जन्म देती है कि आम आदमी की समस्याओं का समाधान करने में हमारी प्रशासनिक मशीनरी कितनी संवेदनशील है। जब कोई नागरिक अपनी आवाज बुलंद करने के लिए आत्मदाह जैसे खतरनाक कदम पर उतर आता है, तो यह कहीं न कहीं व्यवस्था की विफलता को उजागर करता है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक उपेक्षा को हल्के में लेना बेहद खतरनाक हो सकता है। अगर समय रहते ऐसी आवाजों को सुना और सम्मान नहीं दिया गया, तो इस तरह की घटनाएं और भी बढ़ सकती हैं।
मीडिया और समाज की भूमिका
इस घटना के बाद मीडिया और स्थानीय संगठनों पर भी जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे केवल सनसनी फैलाने के बजाय ऐसे मामलों की जड़ तक पहुंचें और सरकार-प्रशासन को मजबूर करें कि वह ठोस कदम उठाए।
निष्कर्ष
मेरठ कमिश्नरी ऑफिस पर हुआ यह आत्मदाह का प्रयास महज एक घटना नहीं है, बल्कि यह उन हजारों पीड़ितों की आवाज है जो आज भी न्याय और समानता के लिए भटक रहे हैं। यह समय है कि प्रशासन संवेदनशील बने और जनता की पीड़ा को गंभीरता से सुने। वरना आत्मदाह जैसे कदम समाज और शासन के बीच खाई को और गहरा कर देंगे।
✍️ रिपोर्ट : एलिक सिंह
संपादक – समृद्ध भारत समाचार पत्र
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